property rights:भारत में पारिवारिक रिश्तों और संपत्ति को लेकर अक्सर विवाद होते रहते हैं। विशेषकर तब, जब संपत्ति के उत्तराधिकार की बात आती है। आम धारणा यह है कि बेटी को पिता की संपत्ति में हक है, तो दामाद को भी हो सकता है। लेकिन हाल ही में एक हाईकोर्ट ने इस भ्रम को पूरी तरह से खत्म कर दिया है।
हाईकोर्ट का स्पष्ट फैसला
हाईकोर्ट ने अपने 2025 के फैसले में दो टूक कहा कि दामाद को अपने ससुर की संपत्ति में कोई जन्मसिद्ध या कानूनी अधिकार नहीं है। शादी एक पारिवारिक रिश्ता है, लेकिन इससे किसी संपत्ति पर अधिकार नहीं बनता। यह फैसला देशभर में चर्चा का विषय बन गया और भविष्य में कानूनी झगड़ों की दिशा तय करने वाला साबित हो सकता है।
क्या कहा कोर्ट ने?
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि दामाद भले ही इकलौता हो या वर्षों से ससुराल में रह रहा हो, वह ससुर की संपत्ति में हकदार नहीं होता। अगर ससुर अपनी बेटी को संपत्ति देते हैं, तो वह बेटी की व्यक्तिगत संपत्ति होती है। दामाद को उसमें हिस्सा तब ही मिल सकता है जब कुछ विशेष स्थितियाँ हों — जैसे पत्नी की मृत्यु हो गई हो और कोई संतान न हो।
क्या कहता है उत्तराधिकार कानून?
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अनुसार, किसी मृतक की संपत्ति में पहला अधिकार उसकी संतान, पत्नी और माता को होता है। इसमें दामाद का नाम कहीं नहीं है।
हालांकि, अगर ससुर चाहें तो वे वसीयत (Will) या गिफ्ट डीड (Gift Deed) के माध्यम से अपनी संपत्ति दामाद को दे सकते हैं। लेकिन यह पूरी तरह ससुर की इच्छा और कानूनी प्रक्रिया पर आधारित होता है।
शादी के नाते अधिकार नहीं मिलता
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सिर्फ शादी के रिश्ते के कारण कोई कानूनी अधिकार नहीं बनता। यह एक सामाजिक बंधन है, न कि संपत्ति हस्तांतरण का आधार। इसलिए दामाद को केवल इसलिए ससुर की जायदाद नहीं दी जा सकती क्योंकि उसने उनकी बेटी से विवाह किया है।
कब मिल सकता है दामाद को हक?
दामाद को ससुर की संपत्ति में हिस्सा केवल इन स्थितियों में मिल सकता है:
✅ अगर ससुर ने वसीयत में उसका नाम दर्ज किया हो
✅ अगर गिफ्ट डीड के जरिए संपत्ति ट्रांसफर की गई हो
✅ अगर पत्नी की मृत्यु हो गई हो और कोई संतान न हो (दामाद उत्तराधिकारी बन सकता है)
क्या ये कोई सरकारी योजना है?
नहीं, यह कोई सरकारी योजना नहीं है, बल्कि भारत के उत्तराधिकार कानून और न्यायपालिका द्वारा तय की गई प्रक्रिया है। इसका उद्देश्य पारिवारिक अनुशासन, महिला अधिकारों की रक्षा और संपत्ति विवादों से बचाव है।
क्यों जरूरी था यह फैसला?
यह फैसला उन तमाम मामलों में रास्ता दिखाता है, जहां दामाद संपत्ति को लेकर दावा करते हैं। इससे भविष्य में होने वाले विवाद कम होंगे और बेटियों के अधिकारों की रक्षा होगी। साथ ही, यह समाज में कानूनी जागरूकता भी बढ़ाएगा।
अधिकार नहीं, केवल ससुर की इच्छा पर निर्भर
दामाद का ससुर की संपत्ति पर कोई स्वतः कानूनी अधिकार नहीं होता। अगर ससुर चाहें तो वसीयत या गिफ्ट के माध्यम से संपत्ति दामाद को दे सकते हैं। कोर्ट के फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि संपत्ति के मामलों में सिर्फ पारिवारिक रिश्ते काफी नहीं हैं, बल्कि कानूनी दस्तावेज और प्रक्रिया जरूरी है