Wife Property Right:भारत में महिलाओं के अधिकारों को लेकर एक बड़ा कदम सामने आया है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक निर्णय दिया है, जिसके तहत विवाहित महिलाओं को पति की संपत्ति में न्यायपूर्ण हिस्सा मिलने का रास्ता साफ हो गया है। इस फैसले के बाद अब महिलाओं को उनके आर्थिक योगदान के आधार पर संपत्ति में अधिकार मिलने की संभावना और अधिक मजबूत हो गई है। आइए जानते हैं कि यह फैसला महिलाओं के लिए कैसे फायदेमंद है और उन्हें अपने अधिकारों के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
पारंपरिक पारिवारिक संपत्ति में महिलाओं का अधिकार
पारंपरिक पारिवारिक संपत्ति वह संपत्ति होती है जो पति को उसके पूर्वजों से विरासत में मिली होती है। आमतौर पर इस प्रकार की संपत्ति में पत्नी का कोई सीधा हक नहीं माना जाता। लेकिन अगर पति की इस संपत्ति का विभाजन हो चुका है और उसमें पति को कोई निश्चित हिस्सा मिला है, तो पत्नी को भी उस हिस्से में अधिकार मिल सकता है। यह अधिकार पति की मृत्यु या तलाक की स्थिति में कानूनी रूप से लागू हो सकता है।
पति की मृत्यु या तलाक की स्थिति में अधिकार
यदि पति की मृत्यु बिना वसीयत के होती है, तो पत्नी को उत्तराधिकारी के रूप में कानूनी तौर पर संपत्ति में बराबर का अधिकार मिलता है। अगर वसीयत है लेकिन उसमें पत्नी को संपत्ति नहीं दी गई, तो भी वह कोर्ट में दावा कर सकती है, खासकर अगर वह आर्थिक रूप से पति पर निर्भर रही हो। तलाक के मामलों में भी न्यायालय महिला की सामाजिक और आर्थिक स्थिति के आधार पर भरण-पोषण, आवास और जीवन निर्वाह के लिए संपत्ति का हिस्सा देने का आदेश दे सकता है।
पति के नाम पर खरीदी गई संपत्ति में अधिकार
अगर संपत्ति सिर्फ पति के नाम पर है लेकिन पत्नी ने उसकी खरीद में आर्थिक योगदान दिया है—जैसे लोन चुकाने में मदद, डाउन पेमेंट में हिस्सा—तो वह उस संपत्ति में अपने हिस्से का दावा कर सकती है। इसके लिए बैंक स्टेटमेंट, चेक, ट्रांजैक्शन रसीद जैसे दस्तावेज़ कोर्ट में प्रस्तुत करना आवश्यक होता है।
सह-स्वामित्व संपत्ति में महिलाओं का अधिकार
जब कोई प्रॉपर्टी पति-पत्नी दोनों के नाम पर होती है या दोनों ने मिलकर खरीदी होती है, तो उसे ‘सह-स्वामित्व संपत्ति’ माना जाता है। इस तरह की संपत्ति में दोनों को उनके योगदान के आधार पर हिस्सा मिलता है। कोर्ट भी इन मामलों में महिला के हितों की विशेष सुरक्षा करता है और न्यायपूर्ण विभाजन सुनिश्चित करता है।
दस्तावेज़ों का महत्व
महिलाओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे सभी वित्तीय लेन-देन और संपत्ति से जुड़े दस्तावेज़ों को सुरक्षित रखें। इनमें पंजीकरण पत्र, बैंक रसीदें, ऑनलाइन ट्रांजैक्शन रिकॉर्ड, चेक की प्रतियां आदि शामिल हैं। ये दस्तावेज़ भविष्य में कानूनी दावा करते समय अहम भूमिका निभाते हैं।
वसीयत और उत्तराधिकार कानून की भूमिका
यदि पति ने वसीयत बनाई है और उसमें पत्नी को उत्तराधिकारी बनाया है, तो संपत्ति का अधिकार वसीयत के अनुसार मिलेगा। लेकिन अगर वसीयत में पत्नी को नहीं जोड़ा गया और वह आर्थिक रूप से निर्भर रही है, तो वह अपने हक के लिए कोर्ट में दावा कर सकती है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत, पत्नी, संतान और माता-पिता को बराबरी का हक प्राप्त होता है।
महिलाओं के लिए व्यावहारिक सुझाव
संपत्ति खरीदते समय अपना नाम भी सह-स्वामी के रूप में शामिल करवाएं।
अपने वित्तीय योगदान का पूरा रिकॉर्ड रखें।
संपत्ति दस्तावेज़ों की कॉपी सुरक्षित रखें।
किसी कानूनी निर्णय से पहले योग्य वकील से परामर्श लें।
आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कदम उठाएं।
जागरूकता ही अधिकारों की कुंजी है
सुप्रीम कोर्ट के इस नए फैसले ने महिलाओं के संपत्ति अधिकारों को और अधिक स्पष्ट और मजबूत कर दिया है। अब जरूरी है कि महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहें, दस्तावेज़ों का प्रबंधन करें और आवश्यकता पड़ने पर न्याय की राह पर आगे बढ़ें। एक सशक्त महिला ही अपने और अपने परिवार के लिए सुरक्षित भविष्य का निर्माण कर सकती है